Rakhi mishra

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चिड़ियाघर (प्रेरक लघुकथाएं)

हिरन के पिंजरे में आज त्यौहार का सा माहौल था। एक नन्हा सा मृगछौना वहाँ जन्मा था। चीतल प्रजाति का ये हिरन यदि स्वस्थ और सुंदर निकलता है तो चिड़ियाघर की शान बढ़ जाएगी। पशु चिकित्सक से लगाकर एनीमल फीडर और कई वन्य जीव प्रेमी संस्थाएँ इसमें रूचि ले रही थी।


सामान्य से कुछ कम वजन का वह नन्हा हिरन शावक बेसुध सोया था। उसके आस - पास छायाकारों¸ रपट लेखकों और वन्य जीव प्रेमियों की भीड़ थी। हिरनी माँ¸ इस बरसते सुख की छाँव तले नर के साथ बैठी¸ थकी हुई सी¸ इस दृश्य को देखते हुए स्वास्थ्य लाभ ले रही थी। उसके खान पान और दवाइयों का विशेष ध्यान रखा जा रहा था।


हिरन के पिंजरे के पिछवाड़े एक गंदा नाला बहता था। उसी के पास की एक सूखी और आरामदेह जगह पर एक कुतिया ने भी एक साथ आठ बच्चों को जन्म दिया था। दोनों जानवरों को इन्सानों से मिलते इस अजीब व्यवहार को देखकर आश्चर्य होता था।


हिरनी तो खैर पिंजरे में रहते हुए इस तरह के जीवन की अभ्यस्त हो चुकी थी। कुतिया को उसे देख देख कर हैरानी होती थी। इसने ऐसा आखिर क्या कर लिया है जो इतनी सेवा सूश्रूषा पा रही है? इतनी कवायद करने के बाद भी जन्मा तो एक ही शावक था ना उसने? और कुतिया ने तो पूरे आठ आठ जीव एक साथ जने है।


इस तरह की विड़ंबना वह पहले भी देख चुकी थी। इन्सानों का दिमाग उसे कभी भी समझ नहीं आया था। कुतिया बैठी सोचा करती। इसी बीच नाले का गंदा पानी कभी कभी सरकार की अतिक्रमण हटाओ मुहिम के अफसरों के जैसा उसकी ममता पर कब्जा करने आता। वह नन्हे¸ बंद आँखों के जीव लिये एक स्थान से दूसरा स्थान बदलती रहती।


उस दिन कुतिया विशेष सतर्क थी। उसके नन्हे अब अपने कोमल पैरों से आगे - पीछे सरकने लगे थे। और उनकी इन गतिविधियों से आकर्षित हो दो गली के बच्चे इस टोह में थे कि कब इनमें से एकाध हाथ लग जाए। वह दिन भर उन्हें भौंक कर¸ गुर्राकर वहाँ से भगाती रही थी।


ये सब करते करते अब कुतिया थकने लगी थी। सोचने लगी कि काश एकाध पिंजरा उसे भी नसीब हो जाता तो इन नन्हों की चिंता न रहती। लेकिन पता नहीं ये इन्सान भी क्या अजीब प्राणी है। जाने उस हिरनी के एक बच्चे पर इतनी कृपा क्यों बरस रही है। उसकी हिरनी माँ देखो कैसी सारी चिंताओं से दूर सो रही है। उसे ना स्वयं के खाने की चिंता है और न ही बच्चे के लिये खाना ढूँढ़कर लाना होता है।


कुतिया ने एक आह भरी। काश कि उसके बच्चे भी हिरनी के नन्हे के जैसे भाग्यवान होते!


तभी नाले पार के पिंजरे से एक चीख उभरी। कुतिया ने उठकर देखा¸ दो मनुष्य नन्हे मृगछौने को जबर्दस्ती उसकी माँ से अलग पिंजरे के बाहर ले गये । यही नहीं उन्होने उसे एक नुकीली सी सूई भी चुभो दी।

हिरनौटा दर्द से बिलबिला रहा था। उसकी पिंजरे में बंद हिरनी माँ असहाय सी तिलमिला रही थी।


कुतिया ने आठों जीव अतिरिक्त सावधानी से अपने कब्जे में लिये और चैन से सो गई।

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